अमृतसर,24 अक्टूबर: शिरोमणि अकाली दल ने राज्य की चार सीटों पर होने जा रहे विधानसभा उपचुनाव में उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया है। यह फैसला आज चंडीगढ़ में हुई पार्टी की कार्यसमिति और जिला प्रधानों की बैठक में लिया गया। पंजाब में वर्ष 1992 के बाद यह पहला मौका है जब अकाली दल ने राज्य में होने जा रहा कोई चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है। पार्टी के इस फैसले की वजह पंथक संकट है। लगभग दो घंटे चली बैठक के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने इसका ऐलान किया। हालांकि पार्टी एसजीपीसी के प्रधान पद के लिए होने वाले चुनाव में हिस्सा लेगी। चीमा ने कहा कि अकाली दल हमेशा श्री अकाल तख्त के आदेशों का पालन करता है। अकाल तख्त ने 30 अगस्त को अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल को तनखैया घोषित किया। इसके बाद सुखबीर अकाल तख्त साहिब पर पेश और कई बार सिंह साहिबान से सजा पर फैसला देने का आग्रह किया गया।चीमा ने कहा कि अकाल तख्त ने सुखबीर बादल की पेंडिंग सजा पर फैसला दिवाली के बाद करने की बात कही है। इसलिए पार्टी ने आमराय से फैसला किया है कि वह श्री अकाल तख्त साहिब के फैसले से आगे नहीं जाएगी और चुनाव से बाहर रहेगी।
तनखैया घोषित सुखबीर न प्रचार कर सकते हैं, न चुनाव लड़ सकते हैं
श्री अकाल तख्त साहिब ने 30 अगस्त 2024 को कहा था कि वर्ष 2007 से 2017 के बीच पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल की अगुवाई वाली अकाली-भाजपा सरकार के कार्यकाल में हुई गलतियों और बजर गुनाहों के लिए जब तक सुखबीर बादल अकाल तख्त साहिब पर पेश होकर सिख पंथ से सार्वजनिक तौर से माफी नहीं मांगते, तब तक वह तनखैया घोषित रहेंगे। अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह यह भी साफ कर चुके हैं कि तनखैया तब तक तनखैया ही रहता है, जब तक उसकी तनखा (सजा) पूरा नहीं हो जाती । सुखबीर बादल की सजा पर फैसला दिवाली के बाद लिया जाएगा। अकाल तख्त जत्थेदार के इस फैसले से साफ हो गया कि सुखबीर बादल न तो चुनाव लड़ सकते हैं और न ही प्रचार कर सकते हैं। चीमा ने कहा कि अब चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। पंजाब के लोग चाहते थे कि सुखबीर बादल गिद्दड़बाहा सीट से उपचुनाव लड़ें लेकिन जत्थेदार साहब के आदेश से साफ हो गया है कि वह प्रचार नहीं कर सकते।
फैसला सर्वसम्मति से पास
इससे पहले अकाली दल कार्यसमिति की मीटिंग की
अध्यक्षता पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बलविंदर सिंह भूंदड़ ने की। बैठक में पार्टी के जिला प्रधान पहुंचे थे। मीटिंग में हर मेंबर से राय ली गई और उसके बाद सर्वसम्मति से उपचुनाव नहीं लड़ने का प्रस्ताव पास किया गया। मीटिंग से पहले अकाली नेता विरनजीत सिंह गोल्डी ने कहा कि अगर सुखबीर को प्रचार का हक ही नहीं होगा तो पार्टी के वर्कर इलाके में कैसे जाएंगे? ऐसी स्थिति में चुनाव में नहीं जाना चाहिए।
1992 में अकाली दल ने चुनाव का किया था बायकॉट
1992 में पंजाब विधानसभा चुनाव के समय शिरोमणि
अकाली दल ने चुनाव से बायकॉट किया था। इस दौरान
बेअंत सिंह मुख्यमंत्री बने थे। जबकि जब 1995 में
गिद्दड़बाहा के उपचुनाव आए तो वहां से मनप्रीत सिंह
बादल ने चुनाव लड़ा और जीता था। इसके बाद 1997 में शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा ने मिलकर सरकार बनाई थी। इसके बाद यह पहला मौका है, जब अकाली दल ने चुनाव पीछे हटने का फैसला लिया है। यह पार्टी देश की सबसे पुरानी पार्टियों में शामिल है। हालांकि 2017 से यह पार्टी सत्ता से बाहर है। हालांकि उससे 10 साल पहले वह सत्ता में.रही है। 117 विधायकों वाली पंजाब विधानसभा में तीन विधायक रह गए हैं। वहीं, उनमें से एक विधायक आप में शामिल हो चुके हैं। वहीं, लोकसभा चुनाव में पार्टी मात्र एक ही सीट जीत पाई है। साथ ही वोट बैंक के मामले में पार्टी चौथे स्थान पर पहुंच गई है।
नामांकन के लिए एक दिन शेष
चार सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव होने हैं। इनमें
बरनाला, डेरा बाबा नानक, गिद्दड़बाहा और चब्बेवाल शामिल हैं। लेकिन शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल को जब से तनखैया घोषित किया गया। तब से वह पार्टी की गतिविधियों से दूर हो गए हैं। अब चुनाव की नामांकन प्रक्रिया पूरी होने में एक दिन शेष रह गए हैं। ऐसे में चुनाव मैदान में पार्टी कैसे जाएगी। इसको लेकर सारी रणनीति तैयार की जा रही है। सभी से मिलकर फैसला लिया जाएगा। हालांकि चुनाव को लेकर भी दो पार्टी में दो धाराएं बनी हुई हैं। एक पक्ष चुनाव लड़ना चाहता है और दूसरा चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं है। हालांकि मंगलवार को जब कोर कमेटी की मीटिंग के बाद सीनियर अकाली नेता बिक्रम सिंह मजीठिया से मीडिया ने पूछा गया कि कि क्या अकाली दल आगामी उपचुनाव लड़ रहा है या नहीं। इस पर मजीठिया ने ‘कहा था कि आपको अफवाहों पर विश्वास नहीं करना चाहिए, पार्टी का संसदीय बोर्ड जल्द ही पार्टी की स्थिति स्पष्ट कर देगा। उन्होंने आरोप लगाया था अकाली दल सुधार लहर भाजपा के साथ हुए समझौते के तहत उपचुनाव लड़ रही है।
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