
अमृतसर 1 अगस्त(राजन)पंजाब के तरनतारन में 1993 में हुए फर्जी एनकाउंटर से जुड़े मामले में सीबीआई की अदालत ने तत्कालीन एसएसपी और डीएसपी समेत 5 लोगों को दोषी ठहराया है। मोहाली की सीबीआई अदालत ने 1993 में फर्जी पुलिस मुठभेड़ में 7 युवकों की हत्या के मामले में पूर्व एसएसपी भूपिंदरजीत सिंह, डीएसपी दविंदर सिंह, इंस्पेक्टर सूबा सिंह, एएसआई गुलबर्ग सिंह और एएसआई रघबीर सिंह को दोषी ठहराया है। उन्हें हिरासत में लेकर जेल भेज दिया गया है।सजा 4 अगस्त सोमवार को सुनाई जाएगी। इन सभी पर आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत सजा सुनाई जाएगी।
सात नौजवानों को मारा था
बचाव पक्ष के वकीलों ने बताया कि यह मामला 1993 का है, जिसमें सात नौजवानों को दो अलग-अलग पुलिस मुठभेड़ों में मरा हुआ दिखाया गया था । दोषियों ने उन युवकों को उनके घरों से उठाकर कई दिनों तक अवैध हिरासत में रखा और उन पर अमानवीय अत्याचार किए। उन्हें घरों में ले जाकर जबरन रिकवरी करवाई गई और थानों में यातनाएं दी गईं। इसके बाद तरनतारन में थाना वैरोवाल और थाना सहराली में दो अलग-अलग फर्जी पुलिस मुठभेड़ों की एफआईआर दर्ज की गईं। लेकिन अदालत में यह कहानी पूरी तरह झूठी साबित हुई।
चार एसपीओ पद पर थे तैनात
जिन सात लोगों को पुलिस ने मार दिया था, उनमें से चार पंजाब सरकार में एसपीओ (स्पेशल पुलिस ऑफिसर) के पद पर कार्यरत थे। उन्हें आतंकवादी बताकर फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया था। करीब 33 साल बाद आज इस मामले में अदालत का फैसला आया है। इस केस में 10 पुलिस कर्मियों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें से पांच की ट्रायल के दौरान मौत हो गई। जिन लोगों को मारा गया, उनके परिवारों को न तो उनकी मृत देह (डेड बॉडी) सौंपी गई, न ही उनसे कोई संपर्क किया गया। यहां तक कि परिजनों को उनकी अस्थियां तक नहीं दी गईं।.इतना ही नहीं, मृतकों के घरों में अंतिम धार्मिक संस्कार (पाठ आदि) तक करने नहीं दिए।
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