अमृतसर,27 अक्टूबर (राजन): तरनतारन में 1993 में हुई फर्जी मुठभेड़ मामले में सीबीआई मोहाली कोर्ट ने 2 पूर्व पुलिस अधिकारियों को दोषी करार दिया है। तकरीबन 29 साल के बाद सीबीआई की विशेष अदालत के जज हरिंदर सिद्धू ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने दो पूर्व थानेदारों शमशेर सिंह और जगतार सिंह को धारा 302, 120 व 218 तहत दोषी ठहराया है।
मामला 15 अप्रैल 1993 का है
तकरीबन 29 साल पहले पहले तरनतारन पुलिस ने दावा किया था कि सुबह साढ़े 4 बजे जब वह उबोके निवासी हरबंस सिंह को हथियारों की रिकवरी के लिए जा रहे थे। तभी 3 आतंकियों ने पुलिस पर हमला कर दिया। पुलिस ने अपने बचाव की कोशिश की। क्रॉस फायरिंग में हरबंस सिंह व एक अन्य अज्ञात आतंकी मारा गया था। तरनतारन पुलिस की शिकायत पर अमृतसर के थाना सदर में 302, 307 और 34 IPC, असला एक्ट व टाडा एक्ट की धारा 5 के तहत अज्ञात लोगों पर केस दर्ज किया गया था।
मृतक हरबंस सिंह के भाई को हुआ था शक
मृतक हरबंस के भाई परमजीत सिंह को पुलिस की तरफ से गढ़ी गई कहानी संदिग्ध लगी। अपने मृतक भाई को इंसाफ दिलाने के लिए कानूनी जंग लड़ने का फैसला किया। परमजीत अपने भाई के लिए इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गए। सीबीआई ने हरबंस सिंह के भाई परमजीत
सिंह की शिकायत पर कार्रवाई शुरू की।
2002 में चार्जशीट की गई दायर
सीबीआई की जांच में यह कहानी फर्जी पाई गई।इसके बाद 1999 में केस की पड़ताल के बाद सीबीआई ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज किया। साथ ही केस की जांच शुरू हो गई। 8 जनवरी 2002 को आरोपी पूरन सिंह, तत्कालीन एस आई / एसएचओ पीएस सदर तरनतारन, एसआई शमशेर सिंह, एएसआई जागीर सिंह और एसआई के खिलाफ धारा 120-बी आर /डब्ल्यू 302 और 218 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध के लिए चार्जशीट पेश की गई थी।
सुनवाई के दौरान दो आरोपियों की हो चुकी मौत
मामले की सुनवाई के समय जगतार सिंह सदर तरनतारन में तैनात था। 13 दिसंबर 2002 को सीबीआई कोर्ट द्वारा उसके खिलाफ आरोप तय किए।इस दौरान आरोपी पूरन सिंह और जागीर सिंह की मौत हो गई। इस पूरे मामले में 17 गवाहों ने निचली अदालत में बयान दर्ज कराए। 29 साल के बाद अब शमशेर सिंह और जगतार सिंह को दोषी करार दिया गया है।
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