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फर्जी एनकाउंटर केस में पूर्व डीएसपी को उम्रकैद : पूर्व डीआईजी को 7 साल की सजा सुनाई; 31 साल पहले घर से उठाकर ले गए थे पुलिसकर्मी

कोर्ट के फैसले की जानकारी देते गुलशन के भाई ।

चंडीगढ़ /अमृतसर, 7 जून: तरनतारन में 31 साल पुराने फर्जी एनकाउंटर मामले में मोहाली की सीबीआई स्पेशल कोर्ट ने आज पूर्व डीआईजी दिलबाग सिंह को 7 साल की सजा और रिटायर्ड डीएसपी गुरबचन सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई है। कोर्ट ने दोनों को एक दिन पहले दोषी ठहराया था। अदालत ने दोनों पर आईपीसी की धारा (364) अपहरण, 302 हत्या, 218 (लोक सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को सजा या संपत्ति को जब्त होने से बचाने के इरादे से गलत रिपोर्ट रिकॉर्ड तैयार करना) व (201) सबूत मिटाने के तहत सजा सुनाई है। मृतक के परिवार ने इस मामले में न्याय के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। परिवार का कहना है कि इन्हें फांसी की सजा होनी चाहिए थी। हम इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं।

साल 1993 में घर से उठाकर ले गए

साल 1996 में जंडाला रोड निवासी चमन लाल की शिकायत पर केस दर्ज किया गया था। उन्होंने शिकायत में कहा था कि 22 जून 1993 को तत्कालीन डीएसपी दिलबाग सिंह (डीआईजी के पद से रिटायर हो चुके) के नेतृत्व में तरनतारन पुलिस की एक टीम उनके बेटे गुलशन को जबरन उठा ले गई। इसके अलावा, उनके 2 बेटे प्रवीन कुमार और बॉबी कुमार को भी अपने साथ ले गए। पुलिस ने प्रवीन और बॉबी कुमार को तो छोड़ दिया, लेकिन गुलशन को रिहा नहीं किया। एक महीने बाद 22 जुलाई 1993 को फर्जी एनकाउंटर में गुलशन की हत्या कर दी गई। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने उन्हें बताए बिना उनके बेटे के शव का अंतिम संस्कार कर दिया। पिता चमन लाल के अनुसार, गुलशन कुमार फल विक्रेता थे।

मामले में 32 लोगों की गवाही हुई

सीबीआई की जांच रिपोर्ट के अनुसार, गुरबचन सिंह उस समय सब-इंस्पेक्टर थे और वह तरनतारन ( शहर ) पुलिस स्टेशन को में एस एच ओ के रूप में तैनात थे। उन्होंने गुलशन कुमार अवैध हिरासत में रखा था। इस मामले में सुनवाई के दौरान अर्जुन सिंह, दविंदर सिंह और बलबीर सिंह की मृत्यु हो गई है। इसके अलावा इस मामले में 32 गवाहों का हवाला दिया गया, लेकिन 15 ही लोगों की गवाही हुई। मामले के शिकायतकर्ता चमन लाल की भी मौत हो चुकी है।

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