
अमृतसर, 24 अप्रैल :पंजाबी अध्ययन स्कूल, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर द्वारा साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के सहयोग से “भारतीय ज्ञान परंपरा और पंजाबी साहित्य” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। सेमिनार का नेतृत्व कुलपति प्रो. (डॉ.) करमजीत सिंह और पंजाबी अध्ययन स्कूल के प्रमुख डॉ. मनजिंदर सिंह ने किया। प्रो. करमजीत सिंह ने परंपरा और आत्म-पहचान के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि ज्ञान अनुशासन से उत्पन्न होता है। उन्होंने सेमिनार के सफल आयोजन के लिए विभाग को बधाई दी तथा परिणामों को व्यवस्थित तरीके से दस्तावेजित करने की आशा व्यक्त की। उद्घाटन सत्र में अनुपम तिवारी (संपादक, साहित्य अकादमी) ने साहित्यिक संस्थाओं के साथ जुड़ाव और भारतीय ज्ञान परंपरा के चिंतन और मंथन में साहित्य अकादमी की भूमिका पर प्रकाश डाला।
पंजाबी साहित्य को भारतीय बौद्धिक परंपरा की प्रतिक्रिया के रूप में समझने की आवश्यकता पर बल

डॉ. रवेल सिंह (संयोजक, पंजाबी सलाहकार बोर्ड) ने पंजाबी साहित्य को भारतीय बौद्धिक परंपरा की प्रतिक्रिया के रूप में समझने की आवश्यकता पर बल दिया। मुख्य भाषण में डॉ. हरजीत सिंह गिल (प्रोफेसर एमेरिटस) ने सृष्टि, रचयिता और ज्ञान परंपरा के बीच संबंध, प्रश्नों का महत्व और अस्तित्व व अनस्तित्व की एकता पर अपने विचार प्रस्तुत किए। डॉ. एसपी सिंह (पूर्व कुलपति) ने ज्ञान परंपरा को आत्म-पहचान के साधन के रूप में और नई शिक्षा नीति में इसके समावेश की सराहना की। डॉ. सतिंदर सिंह (पूर्व प्रो-वाइस चांसलर) ने ज्ञान परंपरा के वैश्विक प्रसार के लिए प्रामाणिक आधारों की खोज और भविष्य की चुनौतियों के समाधान के रूप में इसकी क्षमता पर चर्चा की।
पंजाबी साहित्य की दिशा और व्यावहारिक ज्ञान के महत्व पर जोर दिया

दोपहर का सत्र: डॉ. सतिंदर सिंह ने पंजाबी साहित्य की दिशा और व्यावहारिक ज्ञान के महत्व पर जोर दिया। डॉ. वनिता ने जसवंत सिंह नेकी की कविता में भारतीय ज्ञान परंपरा की चिंताओं को उजागर किया। डॉ. अवतार सिंह ने ऋग्वेद से लेकर श्री गुरु ग्रंथ साहिब तक ज्ञान परंपरा के सत और आनंद के सिद्धांतों पर चर्चा की। डॉ. रविन्द्र सिंह ने ज्ञान को एक व्यावहारिक प्रतिक्रिया के रूप में प्रस्तुत करते हुए, आम जनता तक इसकी पहुंच के महत्व पर बल दिया। डॉ. हरजिंदर सिंह ने पंजाबी सूफी और उपाख्यानात्मक कविता में भारतीय ज्ञान परंपरा के तत्वों की जांच की। डॉ. विशाल भारद्वाज ने पंजाबी भाषा में रामायण के वर्णन के माध्यम से शिष्टाचार और परंपरा की शिक्षाओं पर प्रकाश डाला। इसमें विभिन्न विभागों एवं संस्थानों के विद्वानों एवं विशेषज्ञों ने भाग लिया, जिनमें डॉ. गुरमीत सिंह, डॉ. हरजीत कौर, डॉ. सुखबीर कौर महल, डॉ. हसन रेहान, डॉ. अमन, डॉ. सलोनी आदि शामिल थे। संगोष्ठी में भारतीय ज्ञान परंपरा और पंजाबी साहित्य के बीच अंतर्संबंधों पर विस्तृत चर्चा को प्रोत्साहित किया गया, जो साहित्यिक और सांस्कृतिक चर्चाओं के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई।

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