नगर निगम ने कंपनी को दिया है ठेका, कंपनी डेढ़ अरब से अधिक रुपया ले चुकी ; इसकी हो उच्च स्तरीय जांच
अमृतसर,26 नवंबर (राजन गुप्ता):गुरु नगरी अमृतसर में सफाई व्यवस्था का बहुत ही बुरा हाल है। शहर में जगह-जगह गंदगी और कूड़े के ढेर साफ नजर आते हैं। नगर निगम ने शहर में डोर टू डोर कूड़ा लिफ्टिंग, सड़कों से कूड़ा हटाने के कलेक्शन प्वाइंट, डंप में बायोरेमेडीएशन कर कूड़े का पहाड़ को हटाने और वहां पर वेस्ट टू एनर्जी प्लांट लगाने के लिए एक कंपनी के साथ साल 2016 में ठेका किया था। किंतु नगर निगम इन तीनों कार्यों में बुरी तरह से नाकाम हुई है। इसकी एवज में कंपनी नगर निगम से डेढ़ अरब से अधिक रुपया ले चुकी है। कंपनी लोगों के घरों और कमर्शियल अदारों से भी प्रतिमाह लाखों रुपया वसूल कर रही है।
डोर टू डोर और कलेक्शन प्वाइंट से नहीं उठ रहा पूरा कूड़ा
नगर निगम ने डोर टू डोर और कलेक्शन प्वाइंट से कूड़ा उठाने का ठेका जो कंपनी को दिया हुआ है, उसमें नाकामी की बहुत ही बातें है। कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार कंपनी को डोर टू डोर कूड़ा उठाने और कलेक्शन प्वाइंटों से कूड़ा उठाने के लिए 270 गाड़ियां होनी चाहिए। किंतु कंपनी की पकड़ ढीली होने के कारण कुछ असामाजिक तत्वो ने कंपनी की गाड़ियों में से भारी मात्रा में स्पेयर पार्टस चोरी करके गाड़ियों को कंडम करके रखा हुआ है। इसके साथ-साथ असामाजिक तत्वो से कंपनी के अधिकारी भी डरते हैं। इसके अलावा जितनी भी कंपनी की गाड़ियां खराब हो रही हैं, उन गाड़ियों की पूरी तरह से रिपेयर नहीं करवाई जाती। ना ही कंपनी द्वारा कोई नई गाड़ी खरीदी जा रही है। कंपनी द्वारा चलाई गई अधिकांश गाड़ियां कंडम हो चुकी है। चाहे नगर निगम और कंपनी के अधिकारी गाड़ियों की संख्या के बारे में बहुत-बहुत दावे करते हैं। वास्तव में इस वक्त पूरे शहर में डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन के लिए 165 से अधिक गाड़ियां नहीं निकलती है। इसके साथ-साथ कलेक्शन प्वाइंट से कूड़ा हटाने के लिए कंपनी के अधिकांश कंपैक्टर भी खराब पड़े हुए हैं। कंपैक्टर कम चलने से कलेक्शन प्वाइंट से पूरी तरह से कूड़ा नहीं हटाया जा रहा हैँ। डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन रेगुलर ना होने के कारण लोग अपने-अपने घरों का कूड़ा करकट सड़कों पर फेंक देते हैं। जिससे शहर में गंदगी ही गंदगी नजर आती है। इसके बावजूद कंपनी द्वारा शहर से कूड़ा उठाकर भगता वाला कूड़े के डंप के पास एक कंडे से कूड़े का वजन लिया जाता है, उसे वजन के अनुसार कंपनी नगर निगम से रुपया लेती है। जिस इलेक्ट्रिक.कंडे पर कूड़े का वजन होता है, उसकी जांच नगर निगम का एक या दो अधिकारी करते है या नहीं करते है। यह भी एक बहुत बड़ी जांच का विषय है। क्योंकि इस वजन के अनुसार ही कंपनी नगर निगम से प्रतिमाह लगभग 1.55 करोड रुपए से अधिक राशि ले रही है। अभी तक नगर निगम डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन के एवज में कंपनी को डेढ़ अरब से अधिक रुपया दे चुकी है।
कंपनी के अधिकारी बातों के माहिर!
नगर निगम ने जिस कंपनी को ठेका दिया हुआ है, उस कंपनी की अधिकारी बातों के माहिर है। डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन और कलेक्शन प्वाइंट से कूड़ा उठाने की गाड़ियां और मुलाजिम कम होने पर कंपनी का अधिकारी विशेष कर नगर निगम कमिश्नर को बड़े तथ्य बताकर पल्ला झाड़ देते हैं। जबकि नियम कानून के अनुसार डोर टू डोर कूड़ा उठाने, कई क्षेत्रों में 7-7 दिन कूड़ा नहीं उठाया जाता,कूड़े की सेग्रीगेशन ना करने, कलेक्शन प्वाइंटों से कूड़ा ना उठाने और अन्य कई कंडीशन की वजह से निगम अधिकारी कंपनी को लाखों रुपए का जुर्माना लगा सकते हैं। प्रतिमाह जुर्माना ना मात्र या जुर्माना लग ही नहीं रहा।हाल ही में निगम कमिश्नर ने भी खुद निगम अधिकारियों के साथ सेंट्रल हलका में दौरा करके कूड़ा लिफ्टिंग सही ढंग से नहीं होने पर नाराजगी जाहिर की थी। इसके बावजूद भी केंद्रीय विधानसभा विभाग क्षेत्र में कूड़े लिफ्टिंग को लेकर सार्थक परिणाम नहीं निकाल पाए हैं।
डंप में कूड़े का पहाड़
नगर निगम ने कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट किया था कि भगतावाला कूड़े के डंप से कूड़े की बायोरेमेडीएशन करके कूड़े के पहाड़ को हटाना है। जिस वक्त कॉन्ट्रैक्ट किया गया था, उसे वक्त इस कूड़े के डंप में लगभग 13 लाख मेट्रिक टन कूड़ा था। कंपनी द्वारा इस कूड़े के डंप में बायोरेमेडीएशन करके लगभग 2 लाख मेट्रिक टन कूड़े की बायोरेमेडीएशन कर दी। अब पिछले लंबे अरसे से कूड़े की बायोरेमेडीएशन पूरी तरह से बंद पड़ी हुई है। जिस कारण इस वक्त कूड़े के डंप में 18 लाख मेट्रिक टन से अधिक कूड़ा एकत्रित हो चुका है। इसको लेकर भी कंपनी द्वारा अलग-अलग दलीलें दी जाती है, वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है। कंपनी द्वारा कहा जाता है कि वहां पर पहले जो मामूली सी बायोरेमेडीएशन की गई थी, उसमें से ज्वलनशील आरडीएफ निकला था,इस आरडीएफ को नगर निगम द्वारा हटाया नहीं गया है। इसके साथ-साथ डंप में से जहरीला एक लिक्विड निकलता है, इस लिक्विड का भी नगर निगम ने प्रबंध नहीं किया गया है। आरडीएफ और लिक्विड कि अगर उच्च स्तरीय जांच करवाई जाए, इसमें बहुत कुछ निकलेगा। आरडीएफ में भारी मात्रा में तो मिट्टी ही है।इस मिट्टी वाले आरडीएफ को किसी भी बड़ी फैक्ट्री मे डिस्ट्रॉय किया जा सकता है, जैसा कि पुलिस द्वारा हजारों किलो नशीला पदार्थ खन्ना पेपर मिल में डिस्ट्रॉय किया जाता है। पिछले कई वर्षों से मिट्टी से भरा आरडीएफ नगर निगम अधिकारियों द्वारा डिस्ट्रॉय क्यों नहीं करवाया गया। इसमें भी नगर निगम अधिकारियों की कंपनी के अधिकारियों के साथ मिली भगत है।वास्तव में बायोरेमेडीएशन करने के लिए कंपनी के पास ना तो मशीनरी है और ना ही मुलाजिम हैं। कंपनी को वहां पर बिजली का कनेक्शन के लिए मीटर भी लगाया गया है। इसकी भी उच्च स्तरीय जांच होगी तो कंपनी के साथ-साथ निगम अधिकारियों पर भी गाज गिर सकती है।
वेस्ट टू एनर्जी प्लांट
नगर निगम ने कंपनी के साथ डंप वाली जगह पर वेस्ट टू एनर्जी प्लांट लगाने का कॉन्ट्रैक्ट किया था। इसका भी 7 साल बीत जाने के उपरांत कुछ नहीं हो पाया है। कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार नगर निगम ने कंपनी को 25 एकड़ जगह देनी थी। नगर निगम की 25 एकड़ जगह वहां पर है। इसको लेकर तत्कालीन निगम कमिश्नर कुमार सौरभ राज ने डंप की जमीन की डिजिटलइस मैपिंग लुधियाना की एक कंपनी से करवाई थी। उस डिजिटल मैपिंग में भी 25 एकड़ जगह निकली थी। पर भी कंपनी आना खानी करती रही क्योंकि 1 एकड़ में कितने वर्ग फीट है, इसको लेकर भी कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार वाद विवाद होता रहा।इस क्षेत्र में एक मामूली सी जमीन को लेकर एक प्राइवेट पार्टी दे हाई कोर्ट में केस दायर किया था। उस प्राइवेट पार्टी का कहना था कि यहां पर मामूली सी कुछ जमीन की मलकियत उसकी है। कंपनी द्वारा भी हाईकोर्ट में चल रहे केस का बार-बार हवाला दिया जाता रहा। कंपनी द्वारा नगर निगम को यही चेतावनियां देती जाती रही कि वेस्ट टू एनर्जी प्लांट लगाने के लिए नगर निगम ने कंपनी को जमीन न देकर कंपनी का करोड़ो रुपयो का नुकसान किया है। इसके लिए कंपनी हाईकोर्ट में जाकर करोड़ो रुपयो का आर्बिट्रेशन केस दायर करके करोड़ों रुपया वसूलेगी। नगर निगम का एक प्राइवेट पार्टी के साथ चल रहा हाई कोर्ट में केस का नतीजा 17 मई 2023 को नगर निगम के हक में आ गया। हाई कोर्ट के केस के नतीजे को पिछले 4 महीनो से नगर निगम के कार्यालय में ही दबा रहा। इस बारे में ” अमृतसर न्यूज अपडेट्स ” ने डेढ़ महीना पहले नगर निगम के ज्वाइंट कमिश्नर हरदीप सिंह को बताया और हाई कोर्ट के आदेश की कॉपी भी भेज दी। जिस पर अब जाकर कूड़े के डंप वाले क्षेत्र की जमीन की मामूली सी चारदवारी रह गई थी, वह हो रही है। वैसे तो नगर निगम ने जमीन की रिमार्केशन के लिए कई महीने पहले से ही सभी पिल्लर लगा दिए थे। इस सभी कॉन्टेक्टो की उच्च स्तरीय जांच होगी तो कंपनी के साथ-साथ नगर निगम अधिकारियों पर गाज गिर सकती है।
हाई कोर्ट के आदेश की कॉपी
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