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सी.बी.आई. अदालत ने पंजाब पुलिस के पूर्व डी.आई.जी. और सेवानिवृत्त डी.एस.पी. को 1992 के फर्जी मुठभेड़ मामले में दोषी करार दिया

अमृतसर,6 जून: एडवोकेट सर्वजीत सिंह वेरका ने जानकारी दी है कि आज आर.के. गुप्ता की विशेष सी.बी.आई. अदालत ने पंजाब पुलिस के पूर्व डी.आई.जी. दिलबाग सिंह और सेवानिवृत्त डी.एस.पी. गुरबचन सिंह को 1992 के फर्जी मुठभेड़ मामले में दोषी करार दिया। यह मामला सी.बी.आई. द्वारा चमन लाल की शिकायत पर दर्ज किया गया था कि 22.6.1993 को उन्हें, उनके बेटों परवीन कुमार, बॉबी कुमार और गुलशन कुमार को डी.एस.पी. दिलबाग सिंह और एस.एच.ओ. सिटी तरनतारन गुरबचन सिंह की अगुवाई वाली पुलिस पार्टी ने उठाया था और गुलशन कुमार को छोड़कर बाकी सभी को कुछ दिनों बाद रिहा कर दिया गया था। उन्होंने आगे आरोप लगाया कि गुलशन कुमार जो सब्जी विक्रेता था, अवैध हिरासत में पुलिस स्टेशन सिटी तरनतारन में रहा और फिर 22.7.1993 को उसे और तीन अन्य व्यक्तियों को एक फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया और उसके शव को उन्हें नहीं सौंपा गया और लावारिस तरीके से उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया।  पंजाब पुलिस द्वारा लावारिस रूप में बड़े पैमाने पर शवों के अंतिम संस्कार के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के दिनांक 15.11.1995 के आदेशों के अनुपालन में, 28.2.1997 को सीबीआई ने डीएसपी दलबाग सिंह और अन्य के खिलाफ अपहरण, अवैध कारावास और फिर फर्जी मुठभेड़ में गुलशन की हत्या के मामले में मामला दर्ज किया था और 7.5.1999 को जांच पूरी करने के बाद, जिला तरनतारन के पुलिस अधिकारियों अर्थात् डीएसपी दिलबाग सिंह, इंस्पेक्टर गुरबचन सिंह, एएसआई अर्जुन सिंह, एएसआई दविंदर सिंह और एएसआई बलबीर सिंह के खिलाफ आरोप पत्र पेश किया था, लेकिन मुकदमे के दौरान आरोपी अर्जुन सिंह, दविंदर सिंह और बलबीर सिंह की मृत्यु हो गई थी और उनके खिलाफ कार्यवाही समाप्त कर दी गई थी। दूसरी ओर सीबीआई ने इस मामले में 32 गवाहों का हवाला दिया था, लेकिन मुकदमे के दौरान केवल 15 ने गवाही दी क्योंकि ज्यादातर की आरोपियों की योग्यताहीन याचिकाओं के आधार पर देरी से सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई थी, जिन्हें बाद में स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया गया था।  यह भी बताना उचित होगा कि मामले की घटना 22.6.1992 की है, लेकिन आरोपियों के खिलाफ आरोप 7.2.2022 को तय किए गए और इसलिए पहले गवाह का बयान ट्रायल कोर्ट के समक्ष 25.4.2022 को दर्ज किया गया, यानी घटना के करीब 30 साल बाद। इसी तरह इस मामले के शिकायतकर्ता चमन लाल की भी बयान दर्ज होने से पहले ही मौत हो गई थी। दिलबाग सिंह को धारा 364 के तहत दोषी ठहराया गया और गुरबचन सिंह को आईपीसी की धारा 364,302,218 और 201 के तहत दोषी ठहराया गया। दोनों अभियुक्तों को आज जेल भेज दिया गया है। सजा कल सुनाई जाएगी।

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