नई दिल्ली, 9 अक्टूबर:मुफ्त चुनावी वादों को लेकर जब प्रतिस्पर्धा बढ़ी हुई है, ऐसे समय में चुनाव आयोग ने इस पर सवाल उठाए है और कहा है कि पांच साल तक सरकारों को ऐसी घोषणाओं की याद क्यों नहीं आती है। मुख्य चुनाव आयुक्त संजीव कुमार ने कहा कि राजनीतिक दलों कोचुनाव से ठीक पहले ही इसकी याद क्यों आती है?चुनावों में किए जाने वाले मुफ्त वादे राजनीतिक दलों के लिए ‘लोकप्रियता का एक तड़का’ जरूर है, लेकिन जीतने के बाद उनके लिए उसे निभाना और रोकना दोनों ही कठिन होता है। इसे लिए जनता को यह जानने का अधिकार है कि वह इसे कैसे लागू करेंगे और इसके लिए जरूरी पूंजी कहां से जुटाएंगे।
मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह टिप्पणी सोमवार को पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव कार्यक्रम के ऐलान के मौके पर पूछे गए सवालों के जवाब देते हुए की।
मुस्तैदी से जुटा है चुनाव आयोगः मुख्य चुनाव आयुक्त
मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों की ओर से की जाने वाले घोषणाओं और मुफ्त वादों से जुड़ी व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए आयोग मुस्तैदी से जुटा है। आयोग ने इसे लेकर राजनीतिक दलों के साथ एक विमर्श शुरू किया है। एक प्रोफार्मा जारी कर उन्हें जरूरी जानकारी देने के लिए कहा गया है।
चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से क्या कहा है ?
वैसे तो चुनावी प्रक्रिया के तहत सभी राजनीतिक दलों को अपने घोषणा पत्र जारी करने का अधिकार है, लेकिन आयोग का मानना है कि जो घोषणाएं की जा रही है, वह उन्हें कैसे पूरा करेंगे यह जानने का जनता और मतदाताओं को भी अधिकार है। फिलहाल आयोग ने राजनीतिक दलों से कहा है कि वह बताए कि जो घोषणाएं या वादे वह कर रहे है, उसे कैसे पूरा करेंगे। कहां से वित्तीय संसाधन जुटाएंगे। कौन- कौन इसका दायरे में आएगा आदि।
SC के सामने विचाराधीन है मामला
उन्होंने कहा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने विचाराधीन है। बावजूद इसके वह जल्द ही कोर्ट से यह अनुरोध करेंगे, कि इसे लेकर उन्हें कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए जाएं। आयोग ने इस दौरान चुनाव में इस्तेमाल होने वाली नकदी सहित ड्रग्स और शराब के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए भी एक संगठित व्यवस्था बनाए जाने की जानकारी दी।
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