जाखड़ ने कहा – भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं की यही राय
अमृतसर,26 मार्च :पंजाब में भाजपा अकेले लोकसभा चुनाव लड़ेगी। इसकी घोषणा करते हुए पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कहा कि लोगों की राय के बाद यह फैसला लिया गया है। वर्करों और नेताओं की भी यही राय है। पंजाब में लोकसभा की 13 सीटें हैं। पंजाब के भविष्य, जवानी, किसानी और व्यापारियों एवं पिछड़े वर्ग की बेहतरी के लिए यह फैसला लिया गया है। उन्होंने कहा कि पिछले 10 साल में किसानों की फसल का एक-एक दाना उठाया गया है। करतारपुर कॉरिडोर की सदियों की मांग पीएम मोदी ने पूरी की। बता दें कि पहले पंजाब में अकाली दल से भाजपा के दोबारा गठजोड़ की चर्चा थी। भाजपा के सीनियर नेता भी इसके पक्ष में थे। इसके बावजूद यह बातचीत बन नहीं पाई।
गठबंधन ना होने की 2 वजहें
अकाली दल और बीजेपी में दोबारा गठबंधन न होने की
मुख्य वजह किसान आंदोलन और बंदी सिखों की रिहाई का मामला है। अकाली दल इन मुद्दों के सहारे अपनी जमीन पंजाब में दोबारा तलाश रहा है। वह अगर इन मुद्दों से पीछे हटता है तो किसान और पंथक वोट का उसे नुकसान उठाना पड़ सकता है। ऐसे में उसकी तरफ से यह राह चुनी गई। हालांकि जानकारों की माने तो इससे अकाली दल को कोई नुकसान नहीं है।
शाह ने कहा था- भाजपा का एजेंडा क्लियर, साथी आते-जाते हैं
पंजाब में भाजपा-अकाली दल गठबंधन को लेकर चल रही अटकलों पर देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कुछ दिन पहले एक इंटरव्यू में कहा था, “अकाली दल के साथ अभी कुछ तय नहीं हुआ है | बीजेपी ने आज तक अपने किसी भी साथी को जाने के लिए नहीं कहा। देश में आइडियोलॉजी के अनुसार सभी पार्टियां अपना पॉलिटिकल निर्णय करें, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता ।बीजेपी अपने एजेंडा, अपने प्रोग्राम औरआइडियोलॉजी के अनुसार अपनी जगह स्थिर है। कई साथी आते हैं, चले जाते हैं। ” 2020 में किसान आंदोलन के बाद अकाली दल हुआ अलग 2020 में तीन कृषि कानूनों को रद्द करवाने के लिए किसानों ने आंदोलन शुरू किया था। केंद्र में अकाली दल व भाजपा में गठजोड़ के कारण किसानों का गुस्सा स्थानीय नेताओं पर निकल रहा था। किसानों ने भाजपा नेताओं के साथ-साथ अकाली दल का बायकॉट भी करना शुरू कर दिया था। इस बीच 18 सितंबर 2020 को बादल परिवार की बहू हरसिमरत कौर बादल ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद अकाली दल ने भाजपा से अलग होने की घोषणा कर दी थी।
1996 में अकाली दल ने मोगा डेक्लरेशन किया था साइन
अकाली दल व भाजपा का रिश्ता काफी पुराना है । एनडीए के विस्तार में अकाली दल पहला संगठन था, जिसने भाजपा के साथ हाथ मिलाया था। 1992 तक बीजेपी और अकाली दल अलग-अलग चुनाव लड़ते थे। चुनावों के बाद अकाली दल बीजेपी को समर्थन देती थी। 1996 में अकाली दल ने ‘मोगा डेक्लरेशन’ पर साइन किया था और 1997 में पहली बार.एक साथ साथ में चुनाव लड़ा। मोगा डेक्लरेशन में बीजेपी के साथ तीन बातों पर जोर दिया गया था। जिसमें पहली पंजाबी आइडेंटिटी थी, दूसरा आपसी सौहार्द और तीसरा राष्ट्रीय सुरक्षा। 1984 के दंगों के बाद देश में पैदा हुए माहौल के कारण दोनों पार्टियां साथ आई थीं।
2014 के बाद गिरने लगा अकाली दल का ग्राफ
2012 में अकाली दल भाजपा ने लगातार दूसरी बार पंजाब में सरकार बनाई थी। प्रकाश सिंह बादल ने खुद कमान संभाली और एक बार फिर पंजाब के मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनके बेटे सुखबीर बादल ने खुद को हर काम में आगे रखा। इसके बाद से ही अकाली दल व भाजपा के क्षेत्रीय नेताओं में दूरियां बननी शुरू हो गई थी। अकाली दल हर बार खुद को आगे रखने लगा तो क्षेत्रीय नेता इससे नाराज रहने लगे। 2014 में लोकसभा चुनावों की घोषणा हुई। अकाली दल व भाजपा के बीच बड़े नेताओं की.नाराजगी का असर दिखा। पंजाब में अकाली दल को सत्ता में रहते हुए भी नुकसान हुआ। 2009 के परिणामों में 8 सीटें.थी, जो 2014 में 4 पर सिमट गईं। भाजपा भी 3 से 2 पर
आ गई थी। भाजपा नेता सरेआम अकाली दल से गठजोड़ तोड़ने की मांग करने लगे थे।
पिछले चुनाव में ऐसे रहा था पार्टियों का वोट प्रतिशत
पंजाब में इस बार लोकसभा चुनाव में मुख्य रूप से चार
पार्टियों में सीधा मुकाबला होगा। इसमें आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल, कांग्रेस और भाजपा शामिल है। वहीं अगर 2019 लोकसभा चुनाव की बात करें तो अकाली दल व भाजपा का गठबंधन था, जबकि कांग्रेस और आप अकेले चुनावी मैदान में उतरी थीं। उस समय राज्य में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार थी। कांग्रेस आठ सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। कांग्रेस को 40.18 फीसदी मत मिले थे। अकाली दल भाजपा गठबंधन को चार सीटें मिली थी। पार्टी को कुल 37.08 फीसदी मत मिले थे। इसके अलावा आम आदमी पार्टी को एक सीट मिली थी। पार्टी को 7.8 फीसदी मत, पंजाब डेमोक्रेटिक अलायंस के बैनर तले उतरी छह पार्टियों को 10.69 फीसदी मत, शिरोमणि अकाली दल अमृतसर 0.4 फीसदी व अन्य को 1.12 फीसदी मत मिले थे।
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