
अमृतसर,6 मार्च:तरनतारन में 32 साल पहले पुलिस ने दो लोगों को आतंकी बताकर एनकाउंटर में मारने का दावा किया था। लेकिन कोर्ट में यह एनकाउंटर फर्जी साबित हुआ। मोहाली की सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने दो पूर्व पुलिसकर्मियों को हत्या और अन्य आरोपों में सजा सुनाई है। कोर्ट ने तरनतारन के पट्टी में तैनात तत्कालीन पुलिस अधिकारी सीता राम (80) को आईपीसी की धारा 302 में उम्र कैद व दो लाख जुर्माना लगाया गया। एसएचओ पट्टी राज पाल (57) को आईपीसी की धारा 201, और आईपीसी की धारा 120 बी में पांच साल की कैद पचास हजार जुर्माना लगाया गया। यह रकम मृतकों के परिवारों को मुआवजे के रूप में दी जाएगी।
5 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए किया बरी
इसके अलावा पांच अन्य आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया। इस मामले में 11 पुलिस अधिकारियों पर अपहरण, अवैध हिरासत और हत्या का आरोप था, सुनवाई के दौरान चार आरोपियों की मौत हो गई। पांच को बरी कर दिया गया। पीड़ित परिवार का कहना है कि वे बरी किए गए लोगों को सजा दिलाने के लिए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में अपील दायर करेंगे।
परिवार उनके अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाया
सीबीआई जांच में पता चला कि पुलिस ने दोनों युवकों के फर्जी एनकाउंटर के लिए झूठी कहानी गढ़ी थी। पुलिस के मुताबिक जब उन्होंने चेक पोस्ट पर उन्हें रोकने की कोशिश की तो युवकों ने फायरिंग शुरू कर दी, जिसके जवाब में उन्होंने भी फायरिंग की। इसमें दोनों की मौत हो गई। लेकिन कोर्ट में यह कहानी झूठी साबित हुई। दरअसल, 30 जनवरी 1993 को तरनतारन के गलीलीपुर निवासी गुरदेव सिंह उर्फ देबा को पुलिस चौकी के इंचार्ज एएसआई नौरंग सिंह की टीम ने उसके घर से उठाया था। इसके बाद 5 फरवरी 1993 को पट्टी थाना क्षेत्र के गांव बहमनीवाला से एएसआई दीदार सिंह की टीम ने सुखवंत सिंह को उसके घर से उठाया था। बाद में 6 फरवरी 1993 को दोनों की पट्टी थाने के भागूपुर इलाके में फर्जी एनकाउंटर में हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने उनके शवों का लावारिस हालत में अंतिम संस्कार .कर दिया, इसलिए परिवार आखिरी बार उनका चेहरा भी नहीं देख सका। पुलिस ने दावा किया था कि दोनों युवक हत्या और रंगदारी जैसे अपराधों में शामिल थे, लेकिन अदालत में यह भी झूठा साबित हुआ ।
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