पंजाब की कोई गली—गांव ऐसा नहीं जिसकी शौर्य गाथा न हो : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
अमृतसर,28 अगस्त( राजन गुप्ता): जलियांवाला बाग का रेनोवेशन होने के उपरांत प्रधानमंत्री द्वारा वर्चुअल उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि पंजाब की वीरभूमि को जलियांवाला बाग की पवित्र मिट्टी को मेरा प्रणाम। मां भारती की उन संतोनों को भी नमन, जिनके भीतर आजादी की जलती लौ देश को आजाद करवाया। जलियांवाबा बाग में हुई अमानवता की सारी हदें पार कर दी गई। शहादत दीवारों में अंकित गोलियों के निशानों में साफ दिखती है। शहीद कुआ जहां अनगिनत माताओं—बहनों की ममता छीन ली गई। उनका जीवन छीन लिया गया। उनके सपनों को रौद डाला गया।
उन सभी को आज हम याद कर रहे है। जलियांवाला बाग वह स्थान है जिनसे सरकार उधम सिंह, भगत सिंह जैसे अनगिनत क्रांतिवीरों को हिंदोस्तान की आजादी के लिए मर मिटने का हौसला मिला। 13 अप्रैल 1919 के दस मिनट हमारी आजादी की लडाई की सत्यागाथा बन गए। उनकी वजह से ही आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे है। बाग का आधुनिक रूप देश को मिलना हम सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत है। मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे कई बार जलियांवाबा बाग की पवित्र धरती पर आने और यहां की पवित्र मिट्टी को माथे पर लगाने का अवसर मिला है। रेनोवेशन ने शहादत को जीवंत रूप दिया है और यह भावी पीढ़ी को उस काल खंड में ले जाएगा। बाग में हुए नरसिंहार से पहले इस स्थान पर वैशाखी के मेले लगते थे, इसी दिन श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। आजाद के 75वें साल में बाग का यह नया स्वरूप देशवासियों को इस पवित्र स्थान के इतिहास के बारे में बहुत कुछ जाने के लिए प्रेरित करेगा। यह स्थान नई पीढी को हमेशा याद करवाएगा कि हमारी आजादी की यात्रा कैसी रही। यहां तक पहुंचने के लिए हमारे पुर्वजों कितना त्याग, कितना बलिदान दिया और कितना उन्होंने संघर्ष किया। राष्ट्र के प्रति हमारे कर्तव्य क्या होना चाहिए, कैसे हमने देश को सर्वोपरि रखना है, यह प्रेरणा हमें यही से मिलती है। हर राष्ट्र का दायित्व होता है कि वह अपने इतिहास को संजोकर रखे। इतिहास में हुई घटनाएं हमें सिखाती भी है और दिशा भी प्रदान करती है। जलियांवाला बाग के जैसी ही विभीषिका हमने देश के बटवारें में भी देखी है। बहुत से लोग इसके भुगतभोगी रहे है। विभाजन के समय जो कुछ हुआ उसकी पीड़ा आज भी पंजाब ही नहीं देशभर के अनेकानेक परिवार अनुभव करते है। किसी के लिए अतीत की ऐसी विभीषिका को नजरअंदाज करना मुश्किल है। भावी पीडी भी इस पीड़ा को समझ सके, इसलिए हमने 14 अगस्त को हम विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाने की निर्णय लिया। उन्हें पता होना चाहिए कि कितनी बड़ी कीमत चुकाकर हमें स्वतंत्रता मिली। वह उस दर्द उस तकलीफ को समझ सकेंगे, जो करोडों भारतीयों ने सही थी। गुरबाणी हमें सिखाती है सुख दूसरों की सेवा से ही आता है। हम सुखी तभी होते है, जब अपने साथ वालों की पीड़ा को भी अनुभव करते है। आज दुनिया में कही भी कोई भारतीय संकट में होता है तो भारत उसकी मदद के लिए खड़ा हो जाता है। फिर चाहे वह कोरोना काल का समय हो या अफगानीस्थान में वर्तमान में बने हालात। देवीशक्ति मिशन के तहत अफगानीस्थान से सैंकडों साथियों को भारत लाया जा रहा है। चुनौतियां बहुत है, हालात मुश्किल है, पर गुरु कृपा हम पर बनी हुई है। लोगों के साथ हम सीस पर रखकर गुरु ग्रंथ साहिब जी के स्वरूपों को भी लाए है। बीते कुछ सालों में देश ने अपनी इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए जीजान से काम किया है। मानवता की जो सीख हमारे गुरुओं ने दी है, उस पर पालन हो रहा है। आज जिस तरह की वैश्विक परिस्थितयां बन रही हे, वह एक भारत श्रेष्ठ भारत के मायने बताती है। आत्मनिर्भता और आत्मविश्वास क्यों और कितना जरूरी है, यह भी बताती है। अपनी राष्ट्र की बुनियाद पर हम गर्व करे, इसी संकल्प को लेकर अमृत महोत्सव आगे बढ़ रहा है। देश गांव—गांव में आजादी की लडाई के महत्वपूर्ण पडाव है, उसको इसमें याद किया जा रहा है। राष्ट्र नायकों के स्थानों को संरक्षित करने के साथ नए आयाम स्थापित किए जा रहे है। जलियांबाग की तर्ज पर ही देश की पहली इंट्रेक्टिव गैलरी का निर्माण जल्द ही पूरा हो जाएगा। आजाद गैलरी क्रांति से जुडे दस्तावेज डिजीटल अनुभव देगी। कलकता में विकटरी भारत गैलरी को आधुनिक तकनीक के माध्यम से आकर्षित बनाया जा रहा है। आजाद हिंद फौज को भी इतिहास के पन्नों से बाहर लायाजा रहा है। अंडेमान को भी नयी पहचान दी गई है, वहां के दीपों का नाम भी स्वचंता संग्राम को समर्पित किया गया है। आजादी के महायंज्ञ में आदिवासी समाज का बडा योगदान है। उनकी अमर गांथाएं आज भी प्रेरणा देती है। इतिहास की किताबों में उन्हें उतना स्थान नहीं मिला, जितना उन्हें मिलना चाहिए था। आदिवासी संघर्ष के म्युजिम पर भी काम चल रहा है। सर्वोच्च बलिदान देने वाले के लिए राष्ट्रीय स्मारक होना चाहिए। मुझे संतोष है नेशनल वार मैमोरियल राष्ट्र के युवाओं में देशभक्ति भाव जगा रहा है। देश को सुरक्षित रखने के लिए पंजाब सहित देश में जो हमारे सैनिक शहीद हुए है, आज उन्हें उचित मान सम्मान मिला है। पुलिस के जवान, अद्र्धसैनिक बलों के लिए भी कोई राष्ट्रीय स्मारक नहीं था। आज उनको समर्पित राष्ट्रीय स्मारक भी नई पीढी को प्रेरित कर रहा है। पंजाब में तो शायद ही ऐसा कोई गांव या गली होगी, जहां कोई शौर्य की कोई गाथा न हो। गुरुओं के बतए मार्ग पर चलते हुए पंजाब के बेटे—बेटियां चटटान देशकी रक्षा को खड़े हो जाते है। गुरु नानक देव जी का 500वां प्रकाश पर्व हो, गुरु गोबिंद सिंह जी का 350 वां प्राकश पर्व या फिर श्री गुरुतेग बहादुर जी का 400 प्रकाश उत्सव यह सभी पडाव सौभाग्य से बीते सात सालों में आए और केंद सरकार ने प्रयास किया कि देश में ही नहीं बल्कि पूरी दूनिया में इन पावन पर्वो के माध्यम से गुरुओं की शिक्षाओं का विस्तार हो। सुल्तानपुर लोधी को हैरीटेज टाउन बनाने का काम सरकार ने किया और करतारपुर कोरिडोर का निर्णय करवाया गया। इतिहास स्थलों को हैरीटेज सर्किट विकसित किया जा रहा है, ताकि इससे भावी पीढी को प्रेरणा भी मिले और वह उनके लिए रोजगार का साधन भी बने। विरासत व विकास को साथ लेकर चलना होगा और पंजाब की धरती हमे हमेशा इसकी प्रेरणा देती रही है। पंजाब हर स्तर पर प्रगति करे,हमारा देश चौहों दिशाओं में प्रगति करे, इसके लिए हमें मिलकर काम करना होगा।
यूके सरकार से उधम सिंह की पिस्टल व डायरी मंगवाई जाए : सीएम
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जलियांवाला बाग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग करते हुए कहा कि उन्होंने रक्षा मंत्री से भी आग्रह किया है कि वह शहीद उधम सिंह की पिस्टल और डायरी को यूके की सरकार से वापस ले आए, ताकि उसे शहीद की जन्मस्थली सुनाम या फिर जलियांवाला बाग के म्यूजिम में सुशोभित किया जा सके, ताकि आने वाली पीढिया उससे प्रेरणा लेती रही। उन्होंने शहीदों को नमन करते हुए कहा कि आज खुशी का दिन है कि प्रधानमंत्री द्वारा जलियांवाला बाग की शहादत के 102 साल पूरे होने पर उने द्वारा करवाई गई रेनोवेशन को जनता को समर्पित कर रहे है। 1919 में बाग में कितने शहीद हुए, दुनिया यह नहीं जानती। खूनी वैसाखी को 102 साल हो गए, इसकी रिचर्स के लिए गुरुनाकन देव विश्वविद्यालय की टीम को लगाया गया है कि शहीद किस गांव से कितने थे, इसकी रिसर्च करे। उन्होंने कहा कि छह किल्ले में बने बाग में तब दस हजार लोग इकट्ठे हुए थे। 1650 गोलियां चली। इसलिए तब कितने शहीद हुए इसको पता करना बहुत जरूरी है। उनके गांव में भी हम स्पेशल ग्रांट दे रहे है। 1919 में आजादी की लड़ाई ने यही से जोर पकड़ा। यही से एक युवा शहीद उधम सिंह ने प्रण लिया और मौका मिला तो लंदन में माइकल ओडायर को गोलीमारकर खत्म किया।