अमृतसर,25 सितंबर: अमृतसर से समाज सेवक प्रमोद चंद्र बाली ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करके कहा है कि माननीय पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 23 सितंबर को प्रबोध चंदर बाली द्वारा दायर जनहित याचिका (CWP-PIL-1 ऑफ 2024, CWP-PIL-142 ऑफ 2024 से संबंधित) की सुनवाई में पंजाब सरकार द्वारा नगर निगम और नगरपालिका परिषद के चुनावों को समय पर न कराने के मुद्दे पर गंभीर चिंता व्यक्त की।प्रबोध चंदर बाली ने 4 जनवरी 2024 को यह जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें सरकार के कानूनी नोटिसों की अवहेलना और पंजाब नगर निगम अधिनियम 1976 (अनुभाग 7(2)(a)) के तहत निर्धारित चुनाव कराने के कर्तव्य का पालन न करने पर ध्यान आकर्षित किया गया था। सरकार की बार-बार की गई अनदेखी के कारण न्यायालय की शरण लेने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा था। अब 23 सितंबर को सुनवाई के उपरांत आगे की सुनवाई 14 अक्टूबर को होगी।
पांच बार सुनवाई स्थगित होने के बाद चीफ जस्टिस ने पंजाब सरकार के रवैये पर गहरी नाराजगी जताई
पाँच बार सुनवाई स्थगित होने के बाद, माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री शील नागू और न्यायाधीश अनिल क्षत्रपाल ने 23 सितंबर 2024 को मामले की सुनवाई की और पंजाब सरकार के रवैये पर गहरी नाराजगी जताई। न्यायालय ने सख्त आदेश जारी करते हुए सरकार को 14 अक्टूबर 2024 तक चुनावों का कार्यक्रम घोषित करने का निर्देश दिया, अन्यथा न्यायालय उचित आदेश पारित करने में संकोच नहीं करेगा। मुख्य न्यायाधीश श्री शील नागू ने पंजाब सरकार के आचरण पर नाराजगी जाहिर की।
लोकतांत्रिक अधिकारों को इस प्रकार छिपाने की कोशिशें स्वीकार्य नहीं
सुनवाई के दौरान, पंजाब के महाधिवक्ता ने वार्डों के परिसीमन से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने का हवाला देते हुए चुनाव स्थगित करने की दलील दी। हालाँकि, न्यायालय ने इस तर्क को सख्ती से खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐसा कोई स्थगन आदेश जारी नहीं किया गया है और लोकतांत्रिक अधिकारों को इस प्रकार छिपाने की कोशिशें स्वीकार्य नहीं हैं।प्रबोधचंदर बाली ने आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार की आलोचना की, जिसने राजनीतिक लाभ के लिए गुप्त तरीकों से वार्ड परिसीमन जैसी रणनीति अपनाई है। उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद सरकार ने इसे चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की और चुनावों में देरी की।
भारी जुर्माना लगाया जाए
आगामी सुनवाई में प्रबोध चंदर बाली अदालत से आग्रह करेंगे कि सरकार पर संवैधानिक उल्लंघन और राजनीतिक स्वार्थ के आधार पर भारी जुर्माना लगाया जाए।यह कानूनी प्रकरण न्यायपालिका की चुनावी अखंडता और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, बावजूद इसके कि सरकार जवाबदेही से बचने की कोशिश कर रही है।
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