अमृतसर,15 अक्टूबर (राजन):श्री दुर्ग्याणा मंदिर में श्री हनुमान का बड़ा मंदिर रामायण काल से जुड़ा हुआ है। ये वही मंदिर है, जहां श्री राम के दोनों बेटों लव-कुश ने उनके अश्वमेघ घोड़े को रोक लिया था। जिन्हें छुड़ाने श्री हनुमान पहुंचे तो उन्हें भी बंधक बना लिया गया।श्री राम के आने पर यहीं सीता माता ने बताया था कि लव-कुश उनके बेटे हैं।जिस वट वृक्ष के साथ उन्हें बंधक बनाया गया, वे आज भी यहां मौजूद है। नवरात्रों की शुरुआत के साथ ही यहां लंगूर मेले का शुभारंभ हो चुका है। रामायण काल में श्री राम को लंका पर विजय पाने के लिए वानर सेना का सहारा लेना पड़ा था। इस मंदिर में प्रचीन काल से श्री राम के लिए वानर सेना तैयार होती आ रही है, जिसे लंगूर मेला कहा जाता है।
मनोकामना पूरी होने पर लाल व सिल्वर गोटे वाले चोले में बच्चों को लंगूर के रूप में सजाते
मान्यता है कि इस चमत्कारिक मंदिर में आकर जो भी पुत्र प्राप्ति की कामना करता है, उसकी इच्छी पूरी होती है। मनोकामना पूरी होने पर हर साल दंपती इस मंदिर में आते हैं लाल व सिल्वर गोटे वाले चोले में बच्चों को लंगूर के रूप में सजाते हैं।शारदीय नवरात्र शुरू होने से लेकर दशहरा तक श्री लंगूर मेला में हजारों बच्चे लंगूर बनकर मंदिर में माथा टेकते हैं । मान्यता है कि जो लोग यहां संतान प्राप्ति के लिए मन्नत मांगते हैं, उनकी मुराद अवश्य पूरी होती है। संतान होने के बाद वह अपने बच्चों को लंगूर बनाकर माथा टिकवाते हैं।सिर पर टोपी के साथ लाल व सिल्वर गोटे वाले परिधान पहने हजारों बच्चे हाथों में बाल गदा लेकर अद्भुत दृश्य प्रस्तु करते हैं। इस बार भी करीब पांच हजार से अधिक परिवारों के बच्चे लंगूर बनेंगे। हर साल शारदीय नवरात्र के पहले दिन यह लंगूर मेला शुरू होता है।15 अक्टूबर रविवार को छड़ी पकड़े हुए बच्चे पांव में छम-छम करती घुंघरू की आवाज के साथ ढोल की थाप पर जय श्रीराम के जयकारे लगाते हुए आए ।
10 दिन नंगे पांव, जमीन पर सोना
लंगूर बनने वाले बच्चों और उनके माता-पिता को यहां कई नियमों का पालन करना पड़ा है। मेले के पहले दिन लंगूर बनने से पहले पूजा होती है जिसमें मिठाई, नारियल और फूलों के हार चढ़ाए जाते हैं। इसके बाद पुजारी से आशीर्वाद लेकर बच्चे लंगूर का चोला धारण करते हैं। लंगूर बने बच्चों को रोजाना दो टाइम मंदिर में माथा टेकने आना पड़ता है। इसके अलावा उन्हें जमीन पर सोना पड़ता है। पूरे नवरात्र नंगे पैर रहना पड़ता है। चाकू से कटी कोई चीज भी इस दौरान नहीं खाई जाती। पूरे मेले के दौरान खानपान वैष्णो रहा है। लंगूर बने बच्चे अपने घर के अलावा किसी और के घर के अंदर नहीं जा सकते।
दिन में 11 बार हनुमान चालीसा पाठ
लंगूर बनने वाला बच्चा सुई धागे का काम और कैंची नहीं चला सकता। उसे दिन में 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। दशहरे के दिन लंगूर बने बच्चे रावण और मेघनाद के पुतलों को तीर मारते हैं। इसके अगले दिन सभी बच्चे मंदिर में हनुमानजी के आगे माथा टेककर अपना बाणा उतारते हैं।
वानरसेना के लिए सुबह-शाम भीड़
लंगूर मेले का दूसरा प्रमुख आकर्षण वानर सेनाएं रहती हैं, जिसमें शामिल युवा हनुमानजी की वेषभूषा धारण कर अपनी भाव-भंगिमाओं से खूब तालियां बटोरते हैं। वानरसेना को देखने के लिए रोज शाम को लोग खासतौर पर मंदिर पहुंचे। वानरसेना में किसी ने हनुमान का रूप धारण किया तो कोई सुग्रीव बनता हैं।
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