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वाॉल्ड सिटी के  मांस-शराब दुकानों पर प्रतिबंध लगाने का विरोध:डीसी आफिस पर दुकानदारों का प्रदर्शन

रोष प्रदर्शन करते हुए दुकानदार।

अमृतसर, 30 दिसंबर:पंजाब सरकार द्वारा अमृतसर वाॉल्ड सिटी को पवित्र शहर घोषित किए जाने के बाद मांस, शराब और तंबाकू की दुकानों पर लगाए गए प्रतिबंधों के खिलाफ शहर के दुकानदारों में भारी रोष है। इसी को लेकर आज लगभग  4,000 परिवारों से जुड़े दुकानदार डीसी दफ्तर पहुंचे और प्रदर्शन किया। इस दौरान उन्होंने प्रशासन से अपने फैसले पर पुनर्विचार की मांग की।

दुकानदारों का कहना है कि सरकार के इस फैसले से हजारों छोटे व्यापारियों की आजीविका पर सीधा असर पड़ा है। लगभग 4000 मीट विक्रेता और उनसे जुड़े परिवार अचानक बेरोजगारी के संकट में आ गए हैं। व्यापारियों के अनुसार, यह आदेश बिना किसी पूर्व सूचना के लागू किया गया, जिससे उनके सामने गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया है।

रोष प्रदर्शन करते हुए दुकानदार।

प्रदर्शन कर रहे दुकानदारों ने बताया कि वे वर्षों से
अपने-अपने इलाकों में वैध रूप से दुकानें चला रहे हैं। पवित्र शहर का दर्जा दिए जाने के बाद अब उन्हें अपनी दुकानें बंद करने या शहर से बाहर शिफ्ट करने के आदेश मिल रहे हैं। दुकानदारों का कहना है कि सरकार ने न तो पुनर्वास की कोई ठोस योजना बनाई है और न ही वैकल्पिक जगह या मुआवजे की कोई व्यवस्था की गई है।

दुकानदारों ने बताया कि पहले इस तरह के आदेश केवल हेरिटेज स्ट्रीट और कॉरिडोर क्षेत्र तक सीमित थे और श्रद्धा के चलते वहां लोग खुद ही मीट और नॉनवेज की दुकानें नहीं चलाते थे। लेकिन अब सरकार ने पूरे गेटों के बाहर तक इन दुकानों को बंद करने के आदेश जारी कर दिए हैं, जिससे.हजारों परिवारों की रोजी-रोटी खतरे में पड़ गई है।

1952 से दुकान चला रहे शरणजीत सिंह ने बताया कि वे अपनी मांगों को लेकर डीसी दफ्तर पहुंचे हैं। उन्होंने
कहा कि सरकारों का काम लोगों को बसाना होता है, न कि उजाड़ना। ऐसे आदेश लोगों को विरोध करने पर मजबूर कर रहे हैं। शरणजीत सिंह ने बताया कि सोमवार को डीसी व्यस्त होने के कारण मुलाकात नहीं हो सकी, लेकिन मंगलवार दोपहर का समय दिया गया है और उन्हें भरोसा दिलाया गया है कि उनकी मांगों पर विचार किया जाएगा।

दुकानदारों ने प्रशासन और सरकार से मांग की है कि
इस फैसले पर पुनर्विचार किया जाए। धार्मिक स्थलों के
आसपास के क्षेत्रों को छोड़कर प्रतिबंधों को सीमित किया जाए। दुकानदारों का कहना है कि वे धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हैं, लेकिन सरकार को उनके रोजगार और जीवनयापन के अधिकार का भी ध्यान रखना चाहिए।

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